Wednesday 23 March 2011

 

 24-03-2011

मुरली सार :- ''मीठे बच्चे - पुण्य आत्मा बनना है तो एक बाप को याद करो, याद से ही खाद निकलेगी, आत्मा पावन बनेगी''


प्रश्न: कौन सी स्मृति रहे तो कभी भी किसी बात में मूँझ नहीं सकते?


उत्तर: ड्रामा की। बनी बनाई बन रही, अब कुछ बननी नाहि... यह अनादि ड्रामा चलता ही रहता है। इसमें किसी बात में मूँझने की दरकार नहीं। कई बच्चे कहते हैं पता नहीं यह हमारा अन्तिम 84वाँ जन्म है या नहीं, मूझ जाते हैं। बाबा कहते मूझों नहीं, मनुष्य से देवता बनने का पुरूषार्थ करो।


धारणा के लिए मुख्य सार :-


1) हर एक के निश्चित पार्ट को जान सदा निश्चिंत रहना है। बनी बनाई बन रही.... ड्रामा पर अडोल रहना है।


2) इस छोटे से संगमयुग पर बाप से पूरा वर्सा लेना है। याद के बल से खाद निकाल स्वयं को कौड़ी से हीरे जैसा बनाना है। मीठे झाड़ के सैपलिंग में चलने के लिए लायक बनना है।


वरदान: त्रिकालदर्शी बन व्यर्थ संकल्प व संस्कारों का परिवर्तन करने वाले विश्व कल्याणकारी भव


जब मास्टर त्रिकालदर्शी बन संकल्प को कर्म में लायेंगे, तो कोई भी कर्म व्यर्थ नहीं होगा। इस व्यर्थ को बदलकर समर्थ संकल्प और समर्थ कार्य करना - इसको कहते हैं सम्पूर्ण स्टेज। सिर्फ अपने व्यर्थ संकल्पों वा विकर्मों को भस्म नहीं करना है लेकिन शक्ति रूप बन सारे विश्व के विकर्मों का बोझ हल्का करने व अनेक आत्माओं के व्यर्थ संकल्पों को मिटाने की मशीनरी तेज करो तब कहेंगे विश्व कल्याणकारी।


स्लोगन: नष्टोमोहा बनना है तो सेवा अर्थ स्नेह रखो, स्वार्थ से नहीं।

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