Monday 4 February 2013


Hindi Murli - 05-02-2013मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - श्री श्री की श्रेष्ठ मत पर चलने से ही तुम नर सेश्री नारायण बनेंगे,निश्चय में ही विजय है''प्रश्न:- ईश्वर की डायरेक्ट रचना में कौन सी विशेषता अवश्य होनी चाहिए?उत्तर:- सदा हर्षित रहने की। ईश्वर की रचना के मुख से सदैव ज्ञान रत्न निकलतेरहें। चलनबड़ी रॉयल चाहिए। बाप का नाम बदनाम करने वाली चलन हो। रोना, लड़ना-झगड़ना,उल्टा सुल्टा खाना... यह ईश्वरीय सन्तान के लक्षण नहीं। ईश्वर की सन्तानकहलाने वालेअगर रोते हैं, कोई अकर्तव्य करते हैं, तो बाप की इज्जत गँवाते हैं इसलिएबच्चों को बहुत-बहुतसम्भाल करनी है। सदा ईश्वरीय नशे में हर्षितमुख रहना है।धारणा के लिए मुख्य सार :-1) मीठे बाबा और मीठे सुखधाम को याद करना है। इस मायापुरी को बुद्धि से भूलजाना है।2) सर्विस में कभी थकना नहीं है। विजय माला में आने के लिए अथक हो सर्विस करनीहै।शिवबाबा से सच्चा रहना है। कोई भूल-चूक नहीं करनी है। किसी को दु: नहीं देनाहै।वरदान:- साइलेन्स की शक्ति द्वारा नई सृष्टि की स्थापना के निमित्त बनने वालेमास्टर शान्ति देवा भवसाइलेन्स की शक्ति जमा करने के लिए इस शरीर से परे अशरीरी हो जाओ। यह साइलेन्सकी शक्तिबहुत महान शक्ति है, इससे नई सृष्टि की स्थापना होती है। तो जो आवाज से परेसाइलेन्स रूप मेंस्थित होंगे वही स्थापना का कार्य कर सकेंगे इसलिए शान्ति देवा अर्थात् शान्तस्वरूप बन अशान्तआत्माओं को शान्ति की किरणें दो। विशेष शान्ति की शक्ति को बढ़ाओ। यही सबसेबड़े से बड़ामहादान है, यही सबसे प्रिय और शक्तिशाली वस्तु है।स्लोगन:- हर आत्मा वा प्रकृति के प्रति शुभ भावना रखना ही विश्व कल्याणकारीबनना है।--

Sunday 3 February 2013

[04-02-2013]

मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - अभी यह तुम्हारा अन्तिम जन्म है, खेल पूरा होता है इसलिए पावन बन घर जाना है, फिर सतयुग से हिस्ट्री रिपीट होगी'' 
प्रश्न:- घरबार सम्भालते हुए कौन सी कमाल तुम बच्चे ही कर सकते हो? 
उत्तर:- घरबार सम्भालते, पुरानी दुनिया में रहते सभी से ममत्व मिटा देना। देह सहित जो भी पुरानी चीजें हैं उन्हें भूल जाना... यह है तुम बच्चों की कमाल, इसे ही सतोप्रधान सन्यास कहा जाता है, जो बाप ही तुम्हें सिखलाते हैं। तुम बच्चे इस अन्तिम जन्म में पवित्र रहने की प्रतिज्ञा करते हो फिर 21 जन्म के लिए यह पवित्रता कायम हो जाती है। ऐसी कमाल और कोई कर नहीं सकता।
गीत:- तुम्हीं हो माता पिता...
धारणा के लिए मुख्य सार :-
1) कोई भी चित्र का सिमरण नहीं करना है। विचित्र बाप को बुद्धि से याद करना है। बुद्धि योग ऊपर लटकाना है।
2) वापस घर चलना है इसलिए देह सहित सब पुरानी चीजों से ममत्व निकाल देना है। सम्पूर्ण पावन बनना है।
वरदान:- विशेषता देखने का चश्मा पहन सम्बन्ध-सम्पर्क में आने वाले विश्व परिवर्तक भव
एक दो के साथ सम्बन्ध वा सम्पर्क में आते हर एक की विशेषता को देखो। विशेषता देखने की ही दृष्टि धारण करो। जैसे आजकल का फैशन और मजबूरी चश्मे की है। तो विशेषता देखने वाला चश्मा पहनो। दूसरा कुछ दिखाई ही न दे। जैसे लाल चश्मा पहन लो तो हरा भी लाल दिखाई देता है। तो विशेषता के चश्में द्वारा कीचड़ को न देख कमल को देखने से विश्व परिवर्तन के विशेष कार्य के निमित्त बन जायेंगे।
स्लोगन:- परचिंतन और परदर्शन की धूल से सदा दूर रहो तो बेदाग अमूल्य हीरा बन जायेंगे।