Monday, 4 April 2011



 04-04-2011
मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - बाप की यह वण्डरफुल हट्टी (दुकान) है, जिस पर सब वैराइटी सामान मिलता है, उस हट्टी के तुम मालिक हो''


प्रश्न: इस वण्डरफुल दुकानदार की कॉपी कोई भी नहीं कर सकता है - क्यों?


उत्तर: क्योंकि यह स्वयं ही सर्व खजानों का भण्डार है। ज्ञान का, सुख का, शान्ति का, पवित्रता का, सर्व चीजों का सागर है, जिसको जो चाहिए वह मिल सकता है। निवृत्ति मार्ग वालों के पास यह सामान मिल नहीं सकता। कोई भी अपने को बाप समान सागर कह नहीं सकते।


गीत:- तुम्हें पाके हमने....



धारणा के लिए मुख्य सार: 


1) बाप द्वारा जो सुख-शान्ति-पवित्रता का वक्खर मिला है, वह सबको देना है। पहले विकारों का दान दे पवित्र बनना है फिर अविनाशी ज्ञान धन का दान करना है।


2) देवताओं जैसा मीठा बनना है। जो बापदादा से प्रतिज्ञा की है, उसे सदा याद रखना है और बाप की याद में रहकर विकर्म भी विनाश करने हैं।


वरदान: पवित्रता के आधार पर सुख-शान्ति का अनुभव करने वाले नम्बरवन अधिकारी भव


जो बच्चे ''पवित्रता'' की प्रतिज्ञा को सदा स्मृति में रखते हैं, उन्हें सुख-शान्ति की अनुभूति स्वत: होती है। पवित्रता का अधिकार लेने में नम्बरवन रहना अर्थात् सर्व प्राप्तियों में नम्बरवन बनना इसलिए पवित्रता के फाउण्डेशन को कभी कमजोर नहीं करना तब ही लास्ट सो फास्ट जायेंगे। इसी धर्म में सदा स्थित रहना - कुछ भी हो जाए - चाहे व्यक्ति, चाहे प्रकृति, चाहे परिस्थिति कितना भी हिलाये, लेकिन धरत परिये धर्म न
छोड़िये।


स्लोगन: व्यर्थ से इनोसेंट बनो तो सच्चे-सच्चे सेन्ट बन जायेंगे। 



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