Thursday, 10 March 2011

Message for the day

Message for the day
To be careless means to misuse
specialities.

Projection: Most of the times, we are careless which means there is no awareness of one's specialities and so there is the inability to use them for the benefit of the self and for the good of others. Sometimes there is also a tendency to become overconfident because of these specialities and not to work on self-transformation. When we become careless in this way, we are not able to recognize the need for self-change and so we are not able to bring about transformation.

Solution: When I am able to be free from carelessness, I am able to understand the importance of the specialities that I have, and am able to use every speciality that I have. The more I am able to bring out and use the latent specialities that are within me, I am able to experience quick transformation and constant progress. 



मुरली सार :- ''मीठे बच्चे - जैसे बाप का पार्ट है सर्व का कल्याण करना, ऐसे बाप समान कल्याणकारी बनो, अपना और सर्व का कल्याण करो''


प्रश्न: बच्चों की किस एक विशेषता को देख बापदादा बहुत खुश होते हैं?


उत्तर: गरीब बच्चे बाबा के यज्ञ में 8 आना, एक रूपया भेज देते हैं। कहते हैं बाबा इसके बदले हमको महल देना। बाबा कहते बच्चे, यह एक रूपया भी शिवबाबा के खजाने में जमा हो गया। तुमको 21 जन्मों के लिए महल मिल जायेंगे। सुदामा का मिसाल है ना। बिगर कौड़ी खर्चा तुम बच्चों को विश्व की बादशाही मिल जाती है। बाबा गरीब बच्चों की इस विशेषता पर बहुत खुश होते हैं।


गीत:- तुम्हें पाके हमने........


धारणा के लिए मुख्य सार :-


1) सदा अपार खुशी में रहने के लिए बेहद की नॉलेज बुद्धि में रखना है। ज्ञान रत्नों से अपनी झोली भरकर अपना और सर्व का कल्याण करना है। नॉलेज में बहुत-बहुत होशियार बनना है।


2) भविष्य 21 जन्मों के राज्य भाग्य का अधिकार लेने के लिए अपना बैग बैगेज सब ट्रांसफर कर देना है। इस छी-छी दुनिया से छुटकारा पाने की युक्ति रचनी है।


वरदान: मनमनाभव की विधि द्वारा मनरस की स्थिति का अनुभव करने और कराने वाले सर्व बन्धनमुक्त भव


जो बच्चे लोहे की जंजीरे और महीन धागों के बंधन को तोड़ बन्धनमुक्त स्थिति में रहते हैं वे कलियुगी स्थूल वस्तुओं की रसना वा मन के लगाव से मुक्त हो जाते हैं। उन्हें देह-अभिमान वा देह के पुरानी दुनिया की कोई भी वस्तु जरा भी आकर्षित नहीं करती। जब कोई भी इन्द्रियों के रस अर्थात् विनाशी रस के तरफ आकर्षण न हो तब अलौकिक अतीन्द्रिय सुख वा मनरस स्थिति का अनुभव होता है। इसके लिए निरन्तर मनमनाभव की स्थिति चाहिए।


स्लोगन: सच्ची सेवा वह है जिसमें सर्व की दुआओं के साथ खुशी की अनुभूति हो।

 

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