25-03-2011
मुरली सार :- ''मीठे बच्चे - श्रीमत पर कल्याणकारी बनना है, सबको सुख का रास्ता बताना है''
प्रश्न: किसी भी प्रकार की गफ़लत होने का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर: देह-अभिमान। देह-अभिमान के कारण ही बच्चों से बहुत भूलें होती हैं। वह सर्विस भी नहीं कर सकते हैं। उनसे ऐसा कर्म होता है जो सब नफ़रत करते हैं। बाबा कहते - बच्चे आत्म-अभिमानी बनो। कोई भी अकर्तव्य नहीं करो। क्षीरखण्ड हो सर्विस के अच्छे-अच्छे प्लैन बनाओ। मुरली सुनकर धारण करो, इसमें बेपरवाह नहीं बनो।
गीत:- छोड़ भी दे आकाश सिंहासन...
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) देही-अभिमानी बनकर सर्विस की भिन्न-भिन्न युक्तियाँ निकालनी हैं। आपस में क्षीरखण्ड होकर सर्विस करनी है। जैसे बाप कल्याणकारी है ऐसे कल्याणकारी बनना है।
2) प्रीत बुद्धि बन और संग तोड़ एक संग जोड़ना है। कोई ऐसा अकर्तव्य नहीं करना है जो कल्प-कल्पान्तर के लिए नुकसान हो जाए।
वरदान: सोचना, बोलना और करना तीनों को समान बनाने वाले सर्वोत्तम पुरूषार्थी भव
सभी शिक्षाओं का सार है कि कोई भी कर्म से देखने, उठने, बैठने-चलने सोने से फरिश्तापन दिखाई दे, हर कर्म में अलौकिकता हो। कोई भी लौकिकता कर्म वा संस्कारों में न हो। सोचना, करना, बोलना सब समान हो। ऐसे नहीं कि सोचते तो थे कि यह न करें लेकिन कर लिया। जब तीनों ही एक समान और बाप समान हो तब कहेंगे श्रेष्ठ वा सर्वोत्तम पुरूषार्थी।
स्लोगन: जिम्मेवारी उठाना अर्थात् एकस्ट्रा दुआओं का अधिकारी बनना।
मुरली सार :- ''मीठे बच्चे - श्रीमत पर कल्याणकारी बनना है, सबको सुख का रास्ता बताना है''
प्रश्न: किसी भी प्रकार की गफ़लत होने का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर: देह-अभिमान। देह-अभिमान के कारण ही बच्चों से बहुत भूलें होती हैं। वह सर्विस भी नहीं कर सकते हैं। उनसे ऐसा कर्म होता है जो सब नफ़रत करते हैं। बाबा कहते - बच्चे आत्म-अभिमानी बनो। कोई भी अकर्तव्य नहीं करो। क्षीरखण्ड हो सर्विस के अच्छे-अच्छे प्लैन बनाओ। मुरली सुनकर धारण करो, इसमें बेपरवाह नहीं बनो।
गीत:- छोड़ भी दे आकाश सिंहासन...
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) देही-अभिमानी बनकर सर्विस की भिन्न-भिन्न युक्तियाँ निकालनी हैं। आपस में क्षीरखण्ड होकर सर्विस करनी है। जैसे बाप कल्याणकारी है ऐसे कल्याणकारी बनना है।
2) प्रीत बुद्धि बन और संग तोड़ एक संग जोड़ना है। कोई ऐसा अकर्तव्य नहीं करना है जो कल्प-कल्पान्तर के लिए नुकसान हो जाए।
वरदान: सोचना, बोलना और करना तीनों को समान बनाने वाले सर्वोत्तम पुरूषार्थी भव
सभी शिक्षाओं का सार है कि कोई भी कर्म से देखने, उठने, बैठने-चलने सोने से फरिश्तापन दिखाई दे, हर कर्म में अलौकिकता हो। कोई भी लौकिकता कर्म वा संस्कारों में न हो। सोचना, करना, बोलना सब समान हो। ऐसे नहीं कि सोचते तो थे कि यह न करें लेकिन कर लिया। जब तीनों ही एक समान और बाप समान हो तब कहेंगे श्रेष्ठ वा सर्वोत्तम पुरूषार्थी।
स्लोगन: जिम्मेवारी उठाना अर्थात् एकस्ट्रा दुआओं का अधिकारी बनना।
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