Tuesday 12 July 2011

                                                               [13-07-2011]

मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - बेगर से प्रिन्स बनने का आधार पवित्रता है, पवित्र बनने से ही पवित्र दुनिया की राजाई मिलती है''
प्रश्न: इस पाठशाला का कौन सा पाठ तुम्हें मनुष्य से देवता बना देता है?
उत्तर: तुम इस पाठशाला में रोज़ यही पाठ पढ़ते हो कि हम शरीर नहीं आत्मा हैं। आत्म-अभिमानी बनने से ही तुम मनुष्य से देवता, नर से नारायण बन जाते हो। इस समय सब मनुष्य मात्र पुजारी अर्थात् पतित देह-अभिमानी हैं इसलिए पतित-पावन बाप को पुकारते रहते हैं।
गीत:- छोड़ भी दे आकाश सिंहासन...
धारणा के लिए मुख्य सार :-
1) पतित से पावन बनने के लिए ज्ञान और योग में मजबूत होना है। आत्मा में जो खाद पड़ी है उसे याद की मेहनत से निकालना है।
2) हम ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण चोटी हैं इस नशे में रहना है। ब्राह्मण ही वर्से के अधिकारी हैं क्योंकि शिवबाबा के पोत्रे हैं।
वरदान: बाप-दादा के साथ द्वारा माया को दूर से ही मूर्छित करने वाले मायाजीत, जगतजीत भव
जैसे बाप के स्नेही बने हो ऐसे बाप को साथी बनाओ तो माया दूर से ही मूर्छित हो जायेगी। शुरू-शुरू का जो वायदा है तुम्हीं से खाऊं, तुम्हीं से बैठूं, तुम्हीं से रूह को रिझाऊं...इसी वायदे प्रमाण सारी दिनचर्या में हर कार्य बाप के साथ करो तो माया डिस्टर्ब कर नहीं सकती, उसका डिस्ट्रक्शन हो जायेगा। तो साथी को सदा साथ रखो, साथ की शक्ति से वा मिलन में मगन रहने से मायाजीत, जगतजीत बन जायेंगे।
स्लोगन: अपनी ऊंची वृत्ति से प्रवृत्ति की परिस्थितियों को चेंज करो।
मन्सा सेवा के लिए

            Essence Of Murli 13-07-2011


मैं मास्टर दाता हूँ, देना है, देना है, देना ही देना है, इस शुभ संकल्प से सबको प्राप्त हुई शक्तियों वा खजानों का दान करो।

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